आपने अक्सर विवाह, उत्पीड़न, तलाक जैसे मामलों में महिलाओं के अधिकारों पर अवश्य चर्चा सुनी होगी, लेकिन भारत में एक पुरुष के अधिकारों पर बहुत कम बात की जाती है, जबकि भारत के कानून में महिलाओं के साथ ही पुरुषों को भी कई अधिकार प्रदान किए गए हैं। भारत का नागरिक होने के नाते भारतीय संविधान (indian constitution) द्वारा नागरिकों (citizens) को प्रदत्त सभी अधिकार तो उसे हैं ही, इसके अतिरिक्त भी उसके कई अन्य अधिकार हैं।
यदि आपको इन अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं तो भी कोई बात नहीं। इस पोस्ट को शुरू से अंत तक पढ़ें, आपको एक पुरुष सभी अधिकार स्पष्ट हो जाएंगे। आइए, शुरू करते हैं और जानते हैं कि एक पुरुष के क्या क्या अधिकार हैं-
आपराधिक संशोधन अधिनियम 2013 के तहत शिकायत का अधिकार (right to complaint under criminal ammendment act 2013) :
मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि आपराधिक संशोधन अधिनियम (criminal ammendment act) 2013 को निर्भया अधिनियम (nirbhaya act) के तौर पर जाना जाता है। यह संशोधन नई दिल्ली में निर्भया के साथ हुई दरिंदगी के बाद इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए किया गया था। यह लिंग के प्रति तटस्थ अधिनियम है। इसमें महिला पीड़ित की ही भांति एक पुरुष भी एसिड अटैक (acid attack) अथवा एसिड अटैक की कोशिशों की धाराओं (sections) के अंतर्गत शिकायत करने का अधिकार रखता है।

स्व अर्जित संपत्ति पर अधिकार (right to his own earned property):
एक पुरुष का अपनी अर्जित संपत्ति (earned property) पर अधिकार होता है। इस पर उसकी पत्नी अथवा बच्चों का कोई अधिकार नहीं होता। वह जिसे चाहे इस दे सकता है अथवा किसी को भी न देकर ट्रस्ट (trust)) में तब्दील करा सकता है। उसकी इस संपत्ति पर कोई अपना दावा नहीं ठोक सकता। यह अलग बात है कि संबंधित पुरुष इस संपत्ति का वसीयतनामा (will) तैयार कर इसे किसी को सौंप दे। लेकिन यह सब कुछ उसकी मर्जी पर ही निर्भर करेगा।
मानसिक उत्पीड़न पर पुलिस/कोर्ट में शिकायत का अधिकार (right to complaint in police/court on mental torture):
न केवल महिलाओं, बल्कि वर्तमान में पुरुषों का भी मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है। यही नहीं, इस प्रकार की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। मानसिक उत्पीड़न में परिवार से न मिलने देना, दोस्तों-रिश्तेदारों से न मिलने देना, नामर्द पुकारना, घर से निकाल देना, अत्यधिक टोका-टाकी, शारीरिक हिंसा, पीड़ा अथवा क्षति पहुंचाना, अपमानित करना, बार-बार आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक अथवा भावनात्मक हिंसा आदि शामिल हैं।
यदि कोई पुरुष इनमें से किसी भी प्रकार से प्रताड़ित किया जा रहा है तो वह अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत कर सकता है। यदि वहां बात नहीं सुनी जाती तो उसे सीधे चीफ ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट (chief judicial magistrate) यानी सीजेएम (CJM) अथवा मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (metropolitan magistrate) के पास जाकर भी शिकायत का अधिकार है।
तलाक के लिए याचिका दायर करने का अधिकार (right to file a plea for divorce) :
दोस्तों, जिस प्रकार महिलाएं तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती हैं, उसी प्रकार पुरूश को भी यह अधिकार है कि वे तलाक के लिए याचिका दायर कर सकें। विशेष बात यह है कि अपने इस इस अधिकार के प्रयोग के लिए पुरुष को अपनी साथी की सहमति की भी कोई आवश्यकता नहीं होती। वे अपने ऊपर अत्याचार, जान का डर, साथी के छोड़कर चले जाने अथवा मानसिक स्थिरता जैसे हवाले देकर यह याचिका दायर कर सकते हैं।
हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मेंटिनेंस का अधिकार (right to maintanence under hindu marriage act) :
यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है। आपको बता दें दोस्तों कि हिंदू विवाह अधिनियम यानी हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu marriage act) में एक पुरुष को भी महिला की ही तरह मेंटिनेंस (maintenance) यानी रखरखाव का अधिकार दिया गया है। पर्याप्त सुनवाई के पश्चात उसे मिलने वाली मेंटिनेंस की रकम को संबंधित कोर्ट तय करती है।
एकतरफा तलाक में बच्चे की कस्टडी का अधिकार (right to custody of child in one sided divorce):
मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि एकतरफा तलाक अथवा आपसी सहमति के बगैर तलाक के केस में एक पुरुष का भी बच्चे की कस्टडी पर बराबरी का अधिकार माना जाता है। दोस्तों, यहां एक बात आपको और साफ कर दें कि यह बहुत आसान मामला यद्यपि नहीं होता। बच्चे के भविष्य (future) को देखते हुए कोर्ट (court) आर्थिक रूप से सक्षम (economically sound) अभिभावक को ही बच्चे की कस्टडी अधिकांशतः सौंपती है। यद्यपि बच्चा बहुत छोटा होता है और कोर्ट यह मानता है कि उसके लालन पालन में उसकी मां सक्षम है तो कोर्ट मां को भी उसकी कस्टडी सौंप सकती है।
हमारे देश के पुरुषों में अपने अधिकारों को लेकर कितनी जागरूकता है? (How much awareness is there in the men of our country for their rights?)
मित्रों, यदि आपको लग रहा है कि हमारे देश में महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं, लेकिन पुरुष पूरी तरह से जागरुक हैं, तो आप गलत हैं। सच तो यह है कि वे भी अपने अधिकारों के प्रति पूरी तरह सचेत नहीं। जब उनका उत्पीड़न शुरू होता है, तो कई बार वे यह सोचकर चुप हो जाते हैं कि आखिर पत्नी के खिलाफ कहां जाएं। उनकी दौड़ पुलिस थानों में शिकायत (complaint) तक या समझौते (patch up) तक अक्सर खत्म हो जाती है। कानून (law) में उनके लिए क्या व्यवस्था (provision) दी गई है, वे इसके बारे में सोचने की जहमत तक नहीं उठाते।
एक बात यह भी है मित्रों, कि अधिकांश पुरुष अपने खिलाफ हो रहे अन्याय (injustice) के खिलाफ इसलिए भी आवाज नहीं उठाते, क्योंकि हमारे देश में पुरुषों की व्यथा या उसके रोने को कमजोरी समझा जाता है। बनी बनाई धारणाओं के चलते किसी भी प्रकार के उत्पीड़न की स्थिति में लोग उल्टे पुरुष पर ही दोष लगाने लगते हैं। आज के हालातों को देखते हुए पुरुषों के संबंध में भी कानून में नए प्रावधान लाए जाने की आवश्यकता है। इससे समाज में उत्पीड़न से जुड़े मामलों में उनकी स्थिति बदलने में मदद मिलेगी।
महिला हेल्पलाइन पर पुरुष भी मामलों की शिकायत दर्ज करा रहे (men also registering complaint on women helpline)
यदि आपको लगता है कि केवल महिलाएं ही उत्पीड़न की शिकार हैं तो आप गलत हैं। आपको बता दें कि आज के समय में पुरुष भी इसके समान रूप से शिकार हैं। दोस्तों, इसे यदि आप समझना चाहें तो एक बानगी से समझ सकते हैं। उत्तराखंड (uttarakhand) की राजधानी देहरादून (dehradun) में महिला हेल्पलाइन पर पुरुषों के भी बड़ी संख्या में शिकायत दर्ज कराने की बात सामने आई। हालत देखकर आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे।
ढाई साल के अंदर इस हेल्पलाइन पर 900 से भी अधिक पुरुषों ने अपना दुखड़ा दर्ज कराया है। इनमें ज्यादातर पारिवारिक विवाद (family disputes) ही हैं। हेल्पलाइन की पहली कोशिश दोनों पक्षों की काउंसिलिंग (counseling) कर सुलह कराने की होती है। यदि इससे बात नहीं बनती तो फिर मामले को संबंधित थाने में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
विभिन्न निजी संस्थाएं लड़ रहीं पुरुष अधिकारों की लड़ाई (many NGOs are fighting for man rights)
साथियों, यदि अपने देश भारत की बात करें तो इस बात से आप भी सहमत होंगे कि हमारे कानून में महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं, लेकिन यह भी सच है कि उसने पुरुषों को इस मामले में उतने अधिकार नहीं दिए हैं। इससे कई बार महिलाओं द्वारा उनके हितार्थ लाए गए कानूनों का गैर वाजिब इस्तेमाल (unfair use) भी देखने को मिलता है। जैसे-दहेज उत्पीड़न की धाराओं का सबसे गलत इस्तेमाल देखा गया है।
ऐसे में कई निजी संस्थाएं पुरुषों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। उन्होंने अपने कई हेल्पलाइन नंबर (helpline number) भी जारी किए हैं। ऐसी संस्थाओं ने ढेरों पत्नी से प्रताडित पुरुषों की सहायता भी की है और उन्हें न्याय (justice) दिलाया है। लेकिन पुरुष उत्पीड़न रोकने को कानून में जो प्रावधान किए जाने चाहिए, वे अभी तक नहीं किए गए हैं।
इसका मुद्दा भी ये संस्थाएं जोर शोर से उठाती रही हैं, ताकि केवल पुरुष होने के नाते उन्हें उत्पीड़न एवं अन्याय का शिकार न होना पड़े। बड़े शहरों में ऐसी संस्थाओं की गतिविधियां सक्रियता के साथ चल रही हैं। यद्यपि छोटे शहरों में अभी इस संबंध में जागरूकता का अभाव है।
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हिंदू मैरिज एक्ट ने पुरुष को क्या अधिकार दिया है?
हिंदू मैरिज एक्ट ने पुरुष को भी मेंटिनेंस का अधिकार दिया है।
किसी पुरुष द्वारा स्व अर्जित संपत्ति का क्या बंटवारा होगा?
जी नहीं, एक पुरुष द्वारा अर्जित संपत्ति पर केवल उसी का अधिकार होगा।
तलाक के मामले में पुरुष को क्या अधिकार है?
तलाक के मामले में पुरुष को याचिका दायर करने का अधिकार है।
मानसिक उत्पीड़न की स्थिति में पुरुष का क्या अधिकार है?
वह इसके खिलाफ शिकायत करने का अधिकार रखता है।
एक पुरुष के मानसिक उत्पीड़न में क्या क्या शामिल है?
इस संबंध में जानकारी हमने आपको ऊपर पोस्ट में विस्तार से दी है। आप उसमें देख सकते हैं।
दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको बताया कि एक पुरुष के क्या क्या अधिकार हैं। निश्चित रूप से आपकी जानकारी में वृद्धि हुई होगी। इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें और साथ ही हमें अवश्य बताएं कि आपको यह पोस्ट कैसी लगी। इसके लिए आप नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में कमेंट (comment) कर सकते हैं। ।।धन्यवाद।।
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