बाल अधिकार क्या हैं? बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1989 | What rights a child have?

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बच्चे मन के सच्चे माने जाते हैं और हम सभी के बहुत लाडले भी होते हैं। लेकिन जब बात अधिकारों की आती है तो हम में से बहुतों को यह भी नहीं पता होता कि उनके कुछ अधिकार भी हैं। इस वजह से कई बार बच्चे प्रताड़ना के शिकार भी होते हैं। हम उन्हें अपने तरीके से डील करते हैं, क्योंकि हम बाल अधिकारों के प्रति अनभिज्ञ होते हैं।

एक बच्चे के क्या अधिकार हैं? संयुक्त राष्ट्र संघ और भारतीय संविधान द्वारा उन्हें कौन से अधिकार प्रदान किए गए हैं? यदि बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है तो कहां शिकायत की जा सकती है? जैसे आप के विभिन्न सवालों का जवाब आज हम इस पोस्ट के माध्यम से देने की कोशिश करेंगे आइए शुरू करते हैं-

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बाल अधिकारों से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by child rights?)

मित्रों, आगे बढ़ने से पूर्व सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि बाल अधिकारों से क्या तात्पर्य है? साथियों, बाल अधिकार (Children rights) दरअसल, नाबालिगों की देखभाल एवं विशिष्ट सुरक्षा के रूप में बच्चों को मिलने वाले व्यक्तिगत मानवाधिकारों (individual human rights) को कहा जाता है। बच्चों के हितों के मद्देनजर बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी सरकारों द्वारा कई प्रावधान किए गए हैं।

बाल अधिकार क्या हैं? बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1989 | What rights a child have?

यूएनओ द्वारा बच्चों को क्या अधिकार दिए गए हैं? (What rights have been given to the children by UNO?)

मित्रों, सबसे पहले जान लेते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ (united nations organization) यानी यूएनओ (UNO) की ओर से बच्चों को क्या अधिकार प्रदान किए गए हैं। 20 नवंबर, 1959 की बात है। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की बैठक में बच्‍चों के अधिकारों को लेकर एक घोषणा-पत्र जारी किया गया था।

लगभग 30 वर्ष के लंबे समय के पश्चात 20 नवंबर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र संघ में शामिल देशों ने बच्चों के अधिकारों से संबंधित. इस घोषणा-पत्र पर अपनी सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए। इन देशों में हमारा देश भारत भी शामिल था। इस घोषणा पत्र में दुनिया भर के बच्‍चों के लिए कुछ बुनियादी अधिकारों को शामिल किया गया था, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों की बात करें तो वे इस प्रकार से हैं-

  1. जीने एवं देखभाल प्राप्त करने का अधिकार।
  2. परिवार के साथ रहने का अधिकार।
  3. अच्छे स्वास्थ्य एवं बेहतर शिक्षा का अधिकार।
  4. आराम करने, खेलने एवं मनोरंजन का अधिकार।
  5. आर्थिक एवं शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार।
  6. आपदा जैसे -युद्ध, बाढ़, सूखा, महामारी, भूकंप के समय में सबसे पहले राहत पाने का अधिकार।

मित्रों, इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बाल अधिकारों पर कुछ विशेष प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस प्रकार से हैं-

  • 1. समाज अथवा संबंधित राष्ट्र बच्चों के माता-पिता, उनके अभिभावक अथवा उनके वैद्य संरक्षक के स्तर, राष्ट्रीयता, जाति, भाषा, धर्म अथवा उनकी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर बच्चों से व्यवहार में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नही करेगा।
  • 2. सभी सार्वजनिक एवं निजी संस्थाएं अपने कार्य-क्रियाकलापों में बच्चों के हितों को प्राथमिकता देंगे।
  • 3. प्रत्येक बच्चे को जन्म, जीवन एवं विकास का अधिकार है। इसमें बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का अधिकार शामिल है।
  • 4. प्रत्येक बच्चे को अपने देश अथवा परिवार के आधार पर नाम एवं पहचान प्राप्त करने का अधिकार है।
  • 5. बच्चों को किसी भी दशा में अपने माता पिता से तब तक अलग नही किया जा सकता, जब तक कि ऐसा किया जाना कानूनी रूप से अनिवार्य न हो।
  • 6. बच्चों को आराम एवं विश्राम करने के साथ ही खेल एवं मंनोरंजन का पूरा अधिकार है।
  • 7. प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, नैतिक एवं सामाजिक विकास के लिए पर्याप्त जीवनस्तर का अधिकार है।
  • 8. बच्चे को यह अधिकार है कि उनके विचारों पर समुचित ध्यान दिया जाए एवं उनके दैनिक जीवन में किसी भी प्रकार का अवैधानिक हस्तक्षेप न हो।
  • 9. बच्चे को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जानकारी, विचारों एवं सामग्री तक पहुंच तथा धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है।
  • 10. पारिवारिक वातावरण से वंचित बच्चे को राज्य/सरकार की द्वारा विशेष संरक्षण एवं सहायता प्राप्ति का अधिकार है।
  • 11. बच्चों के उचित संरक्षण एवं देखभाल के लिए जिम्मेदार संस्थान, सेवाएं तथा उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं मापदंड के अनुरुप हों।
  • 12. सभी राष्ट्रों के कानून इस प्रकार के होंगे, जिनमें बच्चों के लालन-पालन, संरक्षण, सवंर्धन एवं शिक्षण की जिम्मेदारी समान रुप से मां -बाप एवं कानूनी संरक्षक पर हो।
  • 13. सभी राष्ट्र मां-बाप एवं अभिभावकों को वे तमाम सुविधाएं एवं साधन उपलब्ध कराएंगे, जिनसे बच्चों का उचित लालन-पालन एवं शिक्षण हो।
  • 14. सभी राष्ट्र यह सुनिश्चित करें कि बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण न हो तथा बच्चे उपेक्षा, दुर्व्यवहार, शारीरिक/ मानसिक हिंसा, यौन शोषण आदि से मुक्त हो।
  • 15. सभी राष्ट्र शारीरिक एवं मानसिक रुप से निर्बल बच्चों को सम्मानपूर्ण एवं उचित स्तर का जीवन जीने के लिए मदद करें। इसके लिए वे समाज के लोगों एवं संस्थाओं से सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।
  • 16. मानसिक रुप से बीमार एवं विकलांग बच्चों की देखभाल को सभी राष्ट्र विशेष साधन एवं सुविधाएं उपलब्ध कराएं। उन्हें यथासंभव मुफ्त चिकित्सा सुविधा, शिक्षण आदि के लिए सहायता दें।
  • 17. बच्चों में बीमारियों एवं कुपोषण आदि की रोकथाम के लिए विशेष स्वास्थ्य सुविधाएं हों। उन्हें पोषक आहार, स्वच्छ पानी तथा प्रदूषण मुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जाए। वे कदम उठाए जाएं, जिससे गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु न हो तथा नवजात की भी मृत्यु न हो।
  • 18. बच्चों के लिए कम से कम प्राथमिक स्तर का शिक्षण अनिवार्य एवं मुफ्त हो।
  • बच्चों उच्च शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर मिले। इसके अतिरिक्त जिन बच्चों ने बीच में ही शिक्षा छोड़ दी है, उनका फिर से दाखिल कराया जाए।
  • 19. स्कूलों में अनुशासन ऐसा हो, जिससे बच्चों का मानवीय सम्मान सुरक्षित रहे। उनकी प्रतिष्ठा को ठेस न पहुंचे।
  • 20. बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा का स्वरुप ऐसा हो, जिससे उनका व्यक्तित्व उभरे। उनका शारिरिक एवं मानसिक रुप से पूर्ण विकास हो सके।
  • 21. बच्चों के हित में शिक्षण की व्यवस्था ऐसी हो, जिससे बच्चे जिम्मेदार नागरिक के रुप मे समाज के लोगों के साथ सौहार्द, सहिष्णुता एवं मित्रता के साथ रह सकें। किसी भी तरह के जन्मजात, संकीर्ण अथवा सांप्रदायिक विचारों से उनका जीवन अवरुद्ध न हो।
  • 22. बच्चों के विकास के लिए खेल, आमोद-प्रमोद, विश्राम, अवकाश, शिक्षण आदि उनकी दैहिक दशा एवं उम्र के हिसाब से तय किए जाएं।
  • 23. बच्चों से कोई भी ऐसा कार्य अथवा श्रम न कराया जाए, जिससे उनका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अथवा नैतिक विकास बाधित हो।
  • 24. बच्चों को किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ/द्रव्यों से दूर रखा जाए। इस बात का ख्याल रखा जाए कि बच्चे इन पदार्थो के व्यवसाय में लिप्त न हों।
  • 25. शासन/राज्य बच्चों की खरीद फरोख्त एवं उनके व्यापार पर पूर्ण अंकुश/प्रतिबंध लगाए।
  • 26. जिन बच्चों पर दंडनीय कानून के उल्लंघन का आरोप हो, उनके साथ मानवीय एवं सहृदयतापूर्वक व्यवहार किया जाए, ताकि वे आदर्श नागरिक के रुप में पुनः समाज में सम्मानपूर्वक पुर्नस्थापित हो सकें।
  • 27. यदि बच्चे किसी प्राकृतिक आपदा से पीड़ित हैं तो शासन उन्हें सहायता देगा, ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें।
  • 28. अपराधी बच्चों के विरुद्ध न्यायिक प्रक्रिया ऐसी हो, जो उनकी आयु के अनुरूप हो‌। साथ ही किसी भी दशा में उनके निजता के अधिकार में अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण न हो।
  • 29. बच्चों को आपराधिक गतिविधियों से बचाने के लिए उन पर अपराध सिद्ध होने पर उन्हें निरुद्ध करने की व्यवस्था ऐसी हो, जिसमे उन्हें अपराधी न मानकर उनके सर्वांगीण विकास मे मदद दी जा सके। वे सामान्य जीवन जी सकें।
  • 30. बच्चों को हिंसात्मक कार्यवाही से संबंधित किसी सेना/ संस्था में भर्ती न किया जाए।

भारतीय संविधान ने बच्चों को क्या अधिकार दिए हैं? (What rights have been given to children by indian constitution?)

हमने आपको संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बच्चों को दिए गए अधिकारों पर बात की। आपको बता दें भारतीय संविधान ने भी बच्चों को कई अधिकार प्रदान किए हैं, जो कि इस प्रकार से हैं-

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(A) के अनुसार 6 से 14 वर्ष तक बच्चों को अनिवार्य मुफ्त शिक्षा का अधिकार दिया गया है।
  • भारतीय संविधान की धारा 39 F में बच्चों को स्वतंत्र एवं सम्मानजनक तरीके से जीने एवं विकास के अवसर का अधिकार दिया गया है।
  • संविधान ने बच्चों को बचपन से युवावस्था तक नैतिक-भौतिक दुरुपयोग से बचाव का अधिकार दिया गया है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3) में राज्य को बच्चों के सशक्तिकरण का अधिकार दिया गया है।
  • सभी बच्चों के लिए बेहतर और जरूरी मेडिकल सुविधा (टीके आदि भी) का अधिकार।
  • अपंगता की स्थिति में विशेष सुविधा का अधिकार।
  • साफ पानी, पौष्टिक आहार एवं स्वस्थ रहने के लिए साफ वातावरण का अधिकार।
  • अगर बच्चों से किसी भी तरह का अपराध होता है तो उनसे पूछताछ के दौरान किसी भी तरह की सख्ती से बचाव का अधिकार।
  • नशीली दवाओं, मादक पदार्थों के उपयोग से बचाए जाने का अधिकार।
  • अपराध, बाल श्रम आदि से बचाव का अधिकार।

बाल अधिकारों के हनन की स्थिति में कहां शिकायत करें? (Where to complaint in condition of chil right abuse?)

बच्चों के अधिकारों के बारे में हमने आपको बताया, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि इन अधिकारों का पालन बेहद कम दृष्टिगोचर होता है। अधिकांशतः इनका हनन ही देखने को मिलता है। यद्यपि इस हनन के खिलाफ शिकायत अवश्य की जा सकती है। यदि आपके सामने भी बाल अधिकारों का हनन हो रहा हो तो हो तो आप राष्ट्रीय बाल आयोग (national child comission) के अध्यक्ष को लिखित में शिकायत कर सकते हैं। आप उन्हें इस ई-मेल आईडी complaints.ncpcr@gmail.com पर अपनी शिकायत भेज दर्ज करा सकते हैं।

बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कौन कौन से कानून है? (What laws are there for the safety of children rights?)

हमारे देश में बाल हितों एवं बाल अधिकारों की रक्षा हेतु समय समय पर आवश्यकता अनुसार कई कानून बनाए गए। आइए, अब जान लेते हैं कि ये कानून कौन कौन से हैं-

* बाल श्रम (निषेध) कानून (child labour act)-2016 :

मित्रों, आपको जानकारी दे दें कि यह कानून आज से करीब 36 वर्ष पूर्व सन् 1986 में लाया गया। इस कानून के प्रावधान इस प्रकार से हैं-

  • 14 वर्ष के कम उम्र के बच्चों को किसी भी ऐसे काम में नहीं लगाया जा सकता, जो उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक न हो।
  • 15 साल से लेकर 18 साल के किशोर को किसी फैक्टरी में तभी लगाया जा सकता है, जब उसके पास फिटनेस प्रमाण पत्र हो। बच्चों से केवल साढ़े चार घंटे ही काम कराया जा सकता है।
  • बच्चों से रात में कार्य नहीं लिया जा सकता।
  • बाल श्रम अधिनियम, 1986 को 2016 में संशोधित किया गया। इसके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मेहनत-मजदूरी जैसा शारीरिक कार्य कराना जुर्म माना गया। यद्यपि 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए पारिवारिक उद्यमों में काम करने को वैध माना गया। वहीं, 14 साल से लेकर 18 वर्ष के किशोरों के लिए खतरनाक घोषित किए गये क्षेत्रों में काम करना निषेध किया गया।

दोस्तों, अब आते हैं सजा पर। बाल मजदूरी के आरोप में पहली बार पकड़े जाने पर 20 हजार रुपए से 50 हजार रुपए तक जुर्माना या 6 माह से 3 साल तक कैद या फिर दोनों का प्रावधान किया गया। वहीं, दूसरी बार पकड़े जाने पर सीधे साल भर से तीन साल तक की कैद का प्रावधान किया गया।

* बाल विवाह (निषेध) अधिनियम (child marriage act), 2006

साथियों, आपको बता दें उर्स अधिनियम आज से करीब 13 वर्ष पूर्व 1 नवंबर, 2007 से लागू हुआ। इसे बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम, 1929 के स्थान पर लाया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाह के आयोजन पर रोक लगाना है।

* शिक्षा का अधिकार (right to education)

साथियों, आपको बता दें कि सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21(क) को मौलिक अधिकार (fundamental right) के रूप में शामिल किया गया। आपको बता दें दोस्तों कि इसके तहत 6 साल से लेकर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की गई।

* पॉक्सो अधिनियम (POCSO act), 2012

दोस्तों, आपको जानकारी दे दें कि यह अधिनियम यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बनाया गया। यह कानून बच्चों को यौन शोषण, यौन दुर्व्यवहार एवं पोर्नोग्राफी (pornography) जैसे गंभीर अपराधों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। इसके अतिरिक्त देश भर में लागू होने वाले इस कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई एक विशेष यानी स्पेशल कोर्ट (special court) में कैमरे के सामने बच्चे के माता-पिता की मौजूदगी में होती है।

आपको बता दें साथियों कि इस कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी (child pornography) की परिभाषा (definition) तय की गई है।इससे संबंधित सामग्री रखने पर 5 हजार से लेकर 10 हजार रुपए तक के जुर्माने एवं ऐसी सामग्री का व्यावसायिक इस्तेमाल (commercial use) करने पर जेल की सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। मित्रों, इस सख्त कानून के तहत बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वाले दोषियों को उम्रकैद के साथ मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।

* राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (national child rights conservation commission)

दोस्तों, यह तो आप जानते ही हैं कि बच्चों के लिए बने विभिन्न कानून और अधिकारों को लागू करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। ऐसे में 5 मार्च, 2007 को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना की गई। इस के निर्देशों के अनुपालन में सभी राज्यों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी गठित किए गए हैं।

भारतीय संविधान में बच्चों को क्या अधिकार दिए गए हैं?

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त बाल अधिकारों की डिटेल्स हमने आपको ऊपर पोस्ट में बता दी है। आप वहां से पढ़ सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाल अधिकारों पर घोषणा पत्र कब जारी किया?

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बाल अधिकारों पर घोषणा पत्र सन् 1959 में जारी किया।

यूएनओ बाल घोषणा पत्र पर भारत समेत अन्य सदस्य देशों ने कब हस्ताक्षर किए?

इस घोषणा पत्र पर भारत समेत अन्य सदस्य देशों ने सन् 1989 में हस्ताक्षर किए।

बाल श्रम कानून किस वर्ष लाया गया?

बाल श्रम कानून आज से 36 वर्ष पूर्व सन् 1986 में लाया गया।

बाल अधिकारों के हनन पर किसको शिकायत की जा सकती है?

बाल अधिकारों के हनन पर राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष को शिकायत भेजी जा सकती है।

राष्ट्रीय बाल आयोग को शिकायत कैसे भेजी जा सकती है?

राष्ट्रीय बाल आयोग को ई-मेल आईडी complaints.ncpcr@gmail.com पर शिकायत प्रेषित की जा सकती है।

दोस्तों, हमने आपको इस पोस्ट (post) में एक बच्चे के अधिकारों के बारे में जानकारी दी। उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यदि आपका इस पोस्ट को लेकर कोई सवाल अथवा सुझाव है तो उसे आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हम तक पहुंचा सकते हैं। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश कुमारी

मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

Comments (2)

  1. देश की आजादी के बाद देश में कई कानून बने उलंघन होने पर कठोर कार्यवाही का प्रावधान भी बनाया गया के बाबजूद कानून के विपरीत कार्य हो रहे हैं उस तत्व को कानून का डर नहीं है कहीं न कहीं कानून के रक्षक ही इसके जिम्मेदार हैं अक्सर देखा गया है कि शिकायत करने वाले को ही कानूनी दावपेंच मे फसा दिया जाता है

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