उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, नियम कानून, सजा | uttarakhand freedom of religion bill

हमारे देश में इन दिनों धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बहुत बवाल मचा हुआ है। असहिष्णुता लगातार बढ़ रही है। एक विशेष धर्म/संप्रदाय का दूसरे धर्म पर आक्षेप का एक सिलसिला सा चल गया है। यह तो आप सभी जानते हैं कि हमारे देश में संविधान ने सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। यानी वे अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को स्वीकार कर सकते हैं।

यद्यपि किसी की इच्छा के खिलाफ अथवा जबरन धर्म परिवर्तन करवाना अपराध करार दिया गया है। विभिन्न राज्यों ने जबरन धर्मांतरण पर रोक को लेकर अपने अपने कानून बनाए हैं। उत्तराखंड ने भी हाल ही में धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक पारित किया है। आज इस पोस्ट में हम आपको इस विधेयक के विशेष प्रावधानों के बारे में जानकारी देंगे। साथ ही आपको बताएंगे कि इस विधेयक को लाने का क्या उद्देश्य है? इसे कब पारित किया गया? आदि। आइए, शुरू करते हैं-

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धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या है? (What is the right to freedom of religion?)

सबसे पहले धार्मिक स्वतंत्रता की बात कर लेते हैं। मित्रों, आपको बता दें कि भारतीय संविधान (indian constitution) ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता (freedom of religion) का अधिकार दिया है।यह हमारे छह मौलिक अधिकारों (fundamental rights) में से एक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का एक मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया गया है। जहां अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है, वहीं अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।

धर्मांतरण क्या है? (What is Proselytising?)

दोस्तों, अब धर्मांतरण का अर्थ जान लेते हैं। धर्मांतरण सामान्य रूप से किसी व्यक्ति का अपनी इच्छा से अपने धर्म को परिवर्तित करने की क्रिया है। जैसे-कोई व्यक्ति हिंदू है और वह अपनी इच्छा से सिख धर्म ग्रहण कर लेता है तो उसे धर्मांतरण पुकारा जाएगा। हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग और खास तौर पर कई ऐसे सेलिब्रिटी (celebrity) हैं, जिन्होंने धर्मांतरण किया है। जैसे-सुविख्यात संगीतकार एआर रहमान का नाम ऐसे लोगों में प्रमुखता से लिया जा सकता है। रहमान हिंदू थे। इनका नाम दिलीप राजकपूर था। लेकिन बाद में निजी कारणों से उन्होंने मुस्लिम धर्म ग्रहण कर अपना नाम एआर रहमान रख लिया था।

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, नियम कानून, सजा | uttarakhand freedom of religion bill

जबरन धर्मांतरण से क्या तात्पर्य है? (What is forced Proselytising?)

दोस्तों, हमने आपको धर्मांतरण के विषय में जानकारी दी। आपको बताया कि ऐच्छिक रूप से यदि कोई धर्म बदलता है तो वो धर्मांतरण कहलाता है। अब आपको बताते हैं कि जबरन धर्मांतरण (forced Proselytising) क्या होता है? मित्रों, जब धर्मांतरण जबरदस्ती, किसी प्रकार का दबाव बनाकर, बलपूर्वक, धोखे से, छल से अथवा धमकाकर कराया जाए तो वह जबरन धर्मांतरण की श्रेणी में आता है। कानून किसी को भी इसका अधिकार नहीं देता। जबरन धर्मांतरण अपराध उसकी नजर में अपराध है।

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक क्या है? (What is uttarakhand freedom to religion (ammendment) bill?)

दोस्तों, आपको बता दें कि हाल ही उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को शीतकालीन विधानसभा सत्र के दौरान सदन पटल पर रखा गया था, जिसे सदन द्वारा 30 नवंबर, 2022 को पारित कर दिया गया है। इस विधेयक के जरिए उत्तराखंड के धर्मांतरण कानून-2018, जिसमें व्यवस्था की गई थी कि कोई भी व्यक्ति जबरन अथवा लालच देकर अथवा धोखे से किसी भी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित नहीं कर सकता, के प्रावधानों को और सख्त कर दिया गया है।

उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन विधेयक में क्या प्रावधान किए गए हैं? (What provisions have been made in uttarakhand freedom of religion ammendment bill?)

मित्रों, आइए अब जान लेते हैं कि उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक में क्या क्या प्रावधान किए गए हैं-

  • जबरन एकल धर्मांतरण कराने वालों का दो से सात साल तक की सजा होगी
  • जबरन सामूहिक धर्मांतरण पर तीन वर्ष से लेकर 10 वर्ष की जेल।
  • दोषी को जेल के साथ ही 50 हजार रुपए का जुर्माना देना होगा।
  • जबरन धर्मांतरण करने वालों को जमानत भी नहीं मिल सकेगी। इसे गैर जमानती अपराध बनाया गया है।
  • जबरन धर्मांतरण के पीड़ित (victim of forced Proselytising) लिए मुआवजे का प्रावधान। यह जबरन धर्मांतरण करने वाले को देना होगा। यह न्यूनतम 5 लाख निर्धारित किया गया है।
  • नाबालिग (immature), एससी/एसटी (SC/ST) के जबरन धर्म परिवर्तन पर दो से 10 साल की की सजा एवं 25 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

अभी तक धर्मांतरण के खिलाफ उत्तराखंड में कौन सा कानून काम करता रहा है? (Which act has been in force in uttarakhand till now against Proselytising?)

साथियों, आपको जानकारी दे दें कि उत्तराखंड में आज से करीब पांच वर्ष पूर्व सन् 2018 में धर्मांतरण कानून लागू किया गया था। इसके जरिए जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाई गई थी। यदि कोई ऐसा करता था तो उसके खिलाफ धर्मांतरण कानून में जबरन धर्मांतरण का मामला बनता था। उसके खिलाफ एक से लेकर पांच साल तक की कैद का प्रावधान था। एससी/एसटी मामले में दो वर्ष से लेकर सात साल तक की कैद हो सकती थी।

धर्मांतरण कानून होने के बाद भी यह विधेयक लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? (What forced government to bring the bill inspite already having act regarding Proselytising?)

मित्रों, अब आप सोच रहे होंगे कि धर्मांतरण कानून होने के बावजूद सरकार को इसमें संशोधन (ammendment) की आवश्यकता क्यों पड़ी? दरअसल, राज्य में लोगों के जबरन धर्मांतरण से जुड़े मामलों के बढ़ने की वजह से उत्तराखंड सरकार को धर्मांतरण कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाना पड़ा।

उत्तराखंड सरकार (uttarakhand government) ने इसके जरिए जबरन धर्मांतरण पर सजा को और सख्त कर दिया है। अब जबरन धर्मांतरण कानून को संज्ञेय अपराध होने के साथ ही गैर जमानती करार दिया गया है। इस विधेयक को राज्य विधानसभा द्वारा पारित भी कर दिया है।

अभी तक किन किन राज्यों में धर्मांतरण कानून है? (At present in how much states Proselytising act is implemented?)

अभी तक धर्मांतरण के खिलाफ उत्तराखंड में कौन सा कानून काम करता रहा है? (Which act has been in force in uttarakhand till now against Proselytising?)

ओडिशा (Odisha): दोस्तों, आपको बता दें कि ओडिशा ऐसा पहला राज्य है, जहां जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए आज से करीब 55 वर्ष पूर्व कानून लाया गया था। इस कानून के अंतर्गत जबरन धर्मांतरण पर एक वर्ष की कैद एवं 5 हजार रूपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया था। वहीं, एससी/एसटी के मामले में दो वर्ष की कैद एवं 10 हजार रुपए तक के जुर्माने की व्यवस्था की गई है।

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh): ओडिशा में धर्मांतरण कानून लाए जाने के एक ही वर्ष के भीतर यानी आज से करीब 54 वर्ष पहले सन् 1968 में मध्य प्रदेश में यह कानून लाया गया। यहां भी इस कानून में 2021 में संशोधन किया गया। इस संशोधन के पश्चात धमकाकर, लालच देकर, धोखे से अथवा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो दोषी को एक साल से लेकर 10 वर्ष तक की कैद हो सकती है। इसके साथ ही उसे एक लाख रुपए का जुर्माना भी चुकाना पड़ सकता है।

अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh): दोस्तों, अरूणाचल प्रदेश में आज से करीब 46 वर्ष पूर्व सन् 1978 में धर्मांतरण कानून लाया गया था। यहां जबरन धर्म बदलवाने पर दो साल तक की कैद एवं 10 हजार रुपए तक का प्रावधान किया गया है।

छत्तीसगढ़ : साथियों, यह राज्य बने अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। इसे आज से करीब 22 वर्ष पूर्व सन् 2000 में मध्य प्रदेश से अलगकर बनाया गया। उस समय यहां मध्य प्रदेश का 1968 वाला कानून ही लागू था, किंतु इसमें इसके पश्चात संशोधन किया गया। नए कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने वालों को तीन वर्ष की जेल एवं 20 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान किया गया। वहीं, यदि मामला किसी नाबालिग अथवा एससी/एसटी से जुड़ा हुआ पाया गया तो ऐसे में दोषी को 4 वर्ष की कैद एवं 40 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया।

गुजरात (Gujarat) : यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है। यहां धर्मांतरण कानून करीब 19 साल पूर्व यानी सन् 2003 से लागू है। इसमें भी 2021 में संशोधन किया गया। इसके अंतर्गत जबरदस्ती धर्म बदलवाने पर दोषी के खिलाफ 5 साल की कैद एवं दो लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यदि मामला नाबालिग अथवा एससी/एसटी का हुआ तो ऐसा करने वाले को 7 साल की कैद के साथ ही 3 लाख रूपए जुर्माना भुगतना पड़ेगा।

झारखंड (jharkhand) : इस राज्य का निर्माण बिहार को काटकर सन् 2000 में छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड के साथ ही किया गया था। अभी यह महज 22 साल का है। यहां आज से पांच वर्ष पूर्व सन् 2017 में धर्मांतरण कानून लागू किया गया था। यहां जबरन धर्म परिवर्तित कराए जाने पर दोषी को 3 साल की कैद एवं 50 हजार रुपए का जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। वहीं, नाबालिग अथवा एससी/एसटी के मामले में सजा बढ़कर चार साल हो सकती है। इसके साथ ही एक लाख रुपए का जुर्माना दोषी पर लगाया जा सकता है।

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) : मित्रों, यह 12 जिलों का एक छोटा सा राज्य है। यहां भी भाजपा सरकार आने के बाद आज से तीन वर्ष पूर्व सन् 2019 में धर्मांतरण कानून लागू किया गया। इसके तहत दोषी को एक वर्ष से लेकर पांच साल तक की कैद एवं एससी/एसटी के मामले में दो से लेकर सात साल तक की सजा का प्रावधान किया गया। इसके अलावा दोषी को जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh): उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के आने के बाद जबरन धर्मांतरण पर खास तौर पर नकेल कसी गई है। आज से दो वर्ष पूर्व सन् 2020 में योगी सरकार जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून लाई थी। इसके अंतर्गत दोषी को एक साल से लेकर पांच साल तक की कैद एवं 15 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है। मामला एससी/एसटी से संबंधित होने पर संबंधित को 2 साल से लेकर 10 साल तक की कैद एवं 25 हजार रुपए तक जुर्माना हो सकता है।

जबरन धर्मांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का क्या रूख है? (What is the stand of supreme court on forced Proselytising?)

दोस्तों, हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट (supreme court) भी जबरन धर्मांतरण को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता चुका है। उसने हाल ही में इसे एक बेहद गंभीर मुद्दा भी बताया था। उसका कहना था कि इस संबंध में केंद्र सरकार (Central government) को आगे आना होगा। यदि अभी जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा होगी। कोर्ट ने यह माना कि धार्मिक स्वतंत्रता (freedom of religion) हो सकती है, लेकिन जबरन धर्मांतरण (forced Proselytising) के नाम पर धार्मिक स्वतंत्रता नहीं हो सकती।

जबरन धर्मांतरण के सबसे अधिक मामले कहां सामने आ रहे हैं? (Where the forced Proselytising cases are being reported maximum?)

दोस्तों, यूं तो झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में इस प्रकार के मामले बड़े पैमाने पर सामने आ रहे हैं, लेकिन आज हम बात जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की करेंगे। यदि यहां जबरन धर्मांतरण के आंकड़ों की बात करें तो वह चौंकाने वाले हैं। पूरे प्रदेश में जनवरी, 2021 से लेकर सितंबर, 2022 तक कुल 268 जबरन धर्मांतरण के मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें प्रदेश के आठ जोन (zones) एवं चार पुलिस कमिश्नरेट (police commissionrate) शामिल हैं।

यदि उत्तर प्रदेश के शहरों की बात करें तो इनमें बरेली (barelii) सबसे आगे है। वहां इस तरह के कुल 57 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके बाद मेरठ (Meerut) का नाम आता है, जहां पुलिस ने कुल 49 इस तरह के मामले दर्ज किए हैं। इसके पश्चात लखनऊ (Lucknow) का नाम आता है, जहां 21 माह के भीतर कुल 24 केस इस संबंध में दर्ज किए गए हैं। इस प्रकार औसतन एक मामला हर माह इस तरह का दर्ज किया जा रहा है, ऐसा माना जा सकता है। कई मामलों में पुलिस एफआर (FR) लगा चुकी है तो कई में चार्जशीट (chargesheet) दाखिल हो चुकी है।

लेकिन दोस्तों, कई मामलों में यह भी पाया गया है कि नामजदगी गलत दर्ज करा दी गई है। ऐसे में पुलिस द्वारा इन लोगों को क्लीन चिट (clean chit) भी दी गई है। यदि बात नाबालिगों की करें तो 21 माह में 57 नाबालिग धर्मांतरण का हिस्सा बने हैं। इनमें मेरठ में सर्वाधिक 15 एवं गोरखपुर (Gorakhpur) में 10 मामले सामने आए हैं।

क्या धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हमारा मौलिक अधिकार है?

जी हां, यह हमारा मौलिक अधिकार है।

धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत व्यक्ति किस चीज के लिए स्वतंत्र है?

इस अधिकार के अंतर्गत नागरिक किसी भी धर्म को मानने, उसके अनुसार आचरण करने, प्रचार करने एवं उसे परिवर्तन करने का अधिकार रखता है।

जबरन धर्मांतरण क्या है?

किसी भी व्यक्ति का जबरदस्ती, धोखे से, धमकाकर, बहला-फुसलाकर अथवा लालच देकर धर्मांतरण करना इसके अंतर्गत आता है।

सबसे पहले धर्मांतरण कानून किस राज्य में आया?

सबसे पहले धर्मांतरण कानून ओडिशा में लाया गया।

उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून कब लागू हुआ?

उत्तराखंड धर्मांतरण कानून सन् 2018 में लागू हुआ।

धर्मांतरण कानून क्यों लाया गया?

यह कानून जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाता है।

उत्तराखंड में धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक विधानसभा में कब पारित हुआ?

यह विधेयक 30 नवंबर, 2022 को पारित हुआ।

धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक में क्या प्रावधान है?

यह जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून को और सख्त बनाता है।

धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक में क्या प्रावधान किए गए हैं?

इसमें एकल जबरन धर्मांतरण पर दो से सात साल तक, जबकि सामूहिक जबरन धर्मांतरण पर 3 साल से लेकर 10 तक की जेल होगी।

क्या उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर जमानत मिल सकती है?

जी नहीं, अब यह गैर जमानती अपराध घोषित किया गया है।

दोस्तों, इस पोस्ट (post) में हमने आपको उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक की जानकारी दी। उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी। यदि आपका इस पोस्ट को लेकर कोई सुझाव अथवा सवाल है तो उसे आप नीचे दिए गए कमेंट बाक्स (comment box) में कमेंट (comment) करके बता सकते हैं। ।।धन्यवाद।।

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प्रवेश कुमारी

मास मीडिया क्षेत्र में अपनी 15+ लंबी यात्रा में प्रवेश कुमारी कई प्रकाशनों से जुड़ी हैं। उनके पास जनसंचार और पत्रकारिता में मास्टर डिग्री है। वह गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर से वाणिज्य में मास्टर भी हैं। वह वाणिज्य, व्यापार, कर, वित्त और शैक्षिक मुद्दों और अपडेट पर लिखना पसंद करती हैं। अब तक उनके नाम से 6 हजार से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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