What is the full name of MISA? पुलिस पर सरकारी इशारे पर कार्रवाई करने का आरोप लगता रहा है। राजनीतिक दबाव के चलते कभी भी किसी को भी उठा कर जेल में डाल देना, किसी की संपत्ति जब्त कर लेना, किसी को झूठे मुकदमे में फंसा देना जैसे आरोप आम बात हैं। कई बार कुछ मामले सही भी निकलते हैं। ज्यादातर विपक्षी नेताओं पर इस कार्रवाई को आजमाया जाता है। दबाव में पुलिस को यह सब कदम उठाने पड़ते हैं। कभी कभी सरकार विरोधियों पर सख्ती की मंशा से ऐसे कानून लाती है, जिनका बेजा फायदा उठाना बेहद आसान होता है।
MISA यानी मीसा एक ऐसा ही कानून है, जिसे राजनीतिक विरोधियों के दमन की मंशा से ही लाया गया। आज हम आपको इस एक्ट के बारे में इस post के जरिए पूरी जानकारी देंगे। जैसे कि MISA क्या है? इसका पूरा नाम यानी इसकी full form क्या है? इसे कब लाया गया मतलब कि यह कब पास हुआ? MISA किसकी सरकार में लाया गया? इसे कब खत्म किया गया? आदि आदि। आइए शुरू करते हैं-
MISA Full Form In Hindi –
दोस्तों, सबसे पहले आपको MISA की full form के बारे में बताते हैं। MISA की full form है- Maintenance of internal security act (MISA). इसे हिंदी में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम या आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था कानून भी पुकारा जाता है।
संसद में कब पास हुआ MISA –

जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम संसद में 1971 में पास हुआ था। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में पारित कराया गया था। इस कानून को विवादित कानून कहा गया, क्योंकि इसे लाए जाने का मकसद जनहित न होकर पूरी तरह से राजनीतिक था।
MISA कानून क्या है?
MISA के माध्यम से सरकार, कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली संस्थाओं को असीमित अधिकार दे दिए गए थे। पुलिस और सरकारी एजेंसियां किसी की भी, किसी भी समय प्रीवेंटिव गिरफ्तारी कर सकती थी। किसी की भी तलाशी के लिए वारंट की भी जरूरत नहीं रह गई थी। और सरकार के लिए फोन टैपिंग को भी इसके जरिए लीगल बना दिया गया था।
बगैर किसी चार्ज के किसी को भी उठाकर जेल में डाला जा सकता था। और उस वक्त बड़े नेताओं को भी नहीं बख्शा गया उन्हें बगैर किसी चार्ज महीनों जेल में रहना पड़ा इमरजेंसी काल के दौरान यानी 1975 से 1977 के बीच इसमें बहुत बदलाव हुए। इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि कोर्ट में भी बंदियों की कोई सुनवाई नहीं थी। नेताओं के लिए कोई भी बात कहना या किसी कार्रवाई से बचना बेहद मुश्किल हो गया।
यूं हुआ MISA का बेजा इस्तेमाल –
MISA लागू होने के बाद राजनीतिक बंदियों को बड़े पैमाने पर जेलों में ठूंस दिया गया। Defense of India rules यानी डीआईआर (DIR) के तहत एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। राजनीतिक लोगों के नागरिक अधिकार खत्म करने के साथ ही इस कानून के जरिये सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित करने का काम ज्यादा किया गया। उनकी संपत्ति छीनी गई। उन्हें परेशान करने के नए नए बहाने तलाश किए गए। जिन लोगों को परेशान किया गया, उनमें कांग्रेस विरोधियों के साथ ही पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल थे। कुछ तो 21 माह तक जेल में बंद रहे।
MISA के तहत जेल में डाल दिए जाने वाले लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, लालू प्रसाद यादव, जयप्रकाश नारायण, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडीज, शरद यादव आदि विशेष रूप से शामिल रहे। ज्यादातर संस्थाएं सरकारी इशारे पर नाच रही थीं। और साथ ही साथ आपको यह भी बता दें कि 25 जून 1975 को इमरजेंसी को जब देश में लागू किया गया तो इसके विरोध मेंकई अखबारों में संपादकीय नहीं छापे गए। कई अखबारों के संपादकों ने पहले पेज को काला करके छोड़ दिया।
दिन में MISA का विरोध, शाम को जेल –
मीसा का विरोध करने वालों को बख्शा नहीं जा रहा था, सीधे जेल भेजा जा रहा था। ऐसे ही दौर में राजनीति में ताज़ा कदम रखने वाले ले छात्र नेता अरुण जेटली ने केवल 22 साल की उम्र में 26 जून, 1975 को इमरजेंसी के विरोध में आवाज बुलंद की। शाम तक वह मीसा बंदी के तौर पर तिहाड़ जेल में बंद कर दिए गए। तब चारों ओर इसी तरह के हालात थे। जो भी सरकार के खिलाफ मुंह खोल देता था, उसे जेल का मुंह देखना पड़ता था।
कब खत्म हुआ MISA कानून –
सन् 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। इसी सरकार ने इस कानून को खत्म किया। राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि इमरजेंसी ही इंदिरा गांधी सरकार की सत्ता जाने की वजह बनी। मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ और 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
हालत यह थी कि इंदिरा गांधी अपनी रायबरेली की सीट तक हार गईं और कांग्रेस कुल 153 सीटों पर सिमट गई। देश भर में नई सरकार से नई उम्मीदें थीं, लिहाजा बड़े पैमाने पर जश्न मनाया गया। जनता पार्टी की नई सरकार ने आते ही इस कानून को खत्म कर दिया।
MISA बंदियों को दी गई पेंशन –
गैर कांग्रेसी राज्यों की सरकारें मीसा बंदियों को पेंशन देती थीं। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी भाजपा की सरकार ने मीसा में बंद लोगों को पेंशन देने का काम शुरू कर दिया। आज से करीब छह साल पहले यानी सन् 2014 में राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने भी 800 मीसा बंदियों को 12 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देना शुरू किया। इमरजेंसी की बरसी पर आज भी भाजपा मीसा बंदियों को सम्मानित करती है।
लालू ने बेटी का नाम ही MISA रख दिया –
लालू प्रसाद ने भी अपनी बेटी का नाम मीसा इस कानून के नाम पर ही रखा था। मीसा इस वक्त आरजेडी की ओर से राज्य सभा सदस्य हैं। मीसा 1976 में पैदा हुई थीं। लालू प्रसाद यादव उन लोगों में शामिल थे, जिन्हें मीसा के तहत 21 महीने के लिए बंदी के तौर पर अन्य राजनीतिक बंदियों की तरह जेल में रखा गया था। लालू प्रसाद यादव पर इस कानून का ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम ही मीसा भारती रख दिया।
MISA को लेकर भाजपा साधती रही निशाना –
भाजपा लगातार MISA को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधती रही है। MISA कानून लाना कांग्रेस की एक बड़ी राजनीतिक भूल थी। खुद कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने दबे शब्दों में इस बात को स्वीकारा। भाजपा सालों तक कांग्रेस की इस भूल को जनता के बीच ले जाकर कांग्रेस पर निशाना साधती रही। उसने इसका अपने पक्ष में राजनीतिक फायदा भी उठाया। उसके नेताओं को जमकर कोसा।
MISA बंदी पेंशन पर मध्यप्रदेश में रहा घमासान –
मीसाबंदी पेंशन को लेकर मध्य प्रदेश में पिछले साल जनवरी में घमासान मचा रहा। वहां के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मीसा बंदियों को दी जाने वाली पेंशन पर रोक लगा दी थी। उन्होंने इस संबंध में एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें यह लिखा था कि जांच के बाद सही बंदियों को ही यह पेंशन दी जाएगी। इसके साथ ही CAG यानी कैग की रिपोर्ट का हवाला दिया गया था। जिसके बाद जांच की बात कही गई थी। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस की कमलनाथ की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि यह कांग्रेस का बदला है। कांग्रेस बदले की राजनीति कर रही है। क्योंकि इस कानून को कांग्रेस ही लाई थी। भाजपा शुरू से ही उसकी विरोधी रही।
दोस्तों, लगे हाथ आपको यह भी बता दें कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ संजय गांधी के पूर्व सहयोगी रहे हैं। उनका इमरजेंसी के दौरान ही कांग्रेस में भर्ती किया गया था। और तब यह नारा कहा जाता था कि ‘इंदिरा गांधी के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ’। कमलनाथ संजय गांधी के साथ देहरादून के दून स्कूल के पढ़ने वाले थे। दोनों में स्कूल के जमाने से ही गहरी यारी थी।
कश्मीर में भी राजनीतिक विरोधियों पर चाबुक –
अब बेशक MISA लागू नहीं, लेकिन राज्य की आंतरिक सुरक्षाके लिए खतरा जताते हुए केंद्र सरकार ने कश्मीर के कई नेताओं पर चाबुक चलाया हुआ है। पहले जेल में बंद किया और बाद में नजरबंद कर दिया गया। इनमें जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ. फारुक अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती आदि खास तौर पर शामिल हैं। हाल ही में पूर्व नौकरशाह से राजनीति में उतरे फैजल शाह पर भी जन सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए के तहत कार्रवाई की गई है।
दोस्तों, आपको बता दें कि सत्तानशीन पार्टियों के लिए सत्ता में आने पर विपक्षियों को परेशान करना, दबाव के लिए संवैधानिक संस्थाओं का बेजा इस्तेमाल करना, उनके खिलाफ पुराने केस खोल देना जैसे पैंतरे अपनाए जाते रहे। आलम यह था कि सीबीआई जैसी संस्था को तोता की संज्ञा दे दी गई।
कुछ समय पहले ही सीबीआई का अपने भीतर का विवाद इस कदर उजागर हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही उसकी गूंज थमी। इस वक्त सत्तासीन भाजपा के ऊपर भी संवैधानिक संस्थाओं को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किए जाने के आरोप लग रहे हैं। आलम यह है कि देश की दोनों प्रमुख पार्टियां बस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप ही लगा रही हैं।
अंतिम शब्द –
कई राज्यों में भी कानून का फायदा उठाकर विपक्षी नेताओं पर दबाव बनाने का खेल खूब देखने में मिलता रहा है। उत्तर प्रदेश का उदाहरण सीधे देखा जा सकता है। केंद्र ने दबाव बनाने के लिए मायावती के खिलाफ प्रदेश में बनाए गए अंबेडकर स्मारक में अरबों के हेर फेर को लेकर सीबीआई की जांच की आंच उसके खिलाफ की तो वहीं सपा पर भी जांच की तलवार हट नहीं सकी।
दोस्तों, यह थी MISA के बारे में संपूर्ण जानकारी। इस post के माध्यम से वह सारे बिंदु कवर करने की कोशिश की गई है, जो आप सभी के लिए जानना बेहद आवश्यक है। उम्मीद है कि आपको यह post पसंद आई होगी। अगर आप इस विषय से जुड़े किसी अन्य पक्ष से संबंधित कोई जानकारी चाहते हैं तो भी हमें अवगत करा सकते हैं। अगर आपके मन में है कोई सवाल तो आप नीचे दिए गए comment box में comment करके अपने बात हम तक पहुंचा सकते हैं।
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